गया/लातेहार। झारखंड के लातेहार जिले के महुआडांड़ थाना क्षेत्र के चोरहा दौना जंगल में रविवार रात सुरक्षा बलों के साथ हुई मुठभेड़ में एक खूंखार नक्सली ढेर हो गया। जांच में पुष्टि हुई कि मारा गया नक्सली कोई आम उग्रवादी नहीं, बल्कि 2012 में देशभर को झकझोर देने वाले कटिया कांड का मुख्य साजिशकर्ता मनीष यादव था।

मंगलवार को जैसे ही मनीष का शव गया जिले के छकरबन्धा थाना क्षेत्र अंतर्गत उसके पैतृक गांव मोहलनिया लाया गया, पूरे गांव में सन्नाटा पसर गया। दोपहर करीब चार बजे पुलिस वाहन जब शव लेकर गांव पहुंचा, तो बड़ी संख्या में ग्रामीण देखने के लिए उमड़ पड़े। जहां कुछ बुजुर्ग महिलाएं फूट-फूटकर रोती रहीं, वहीं कई युवा स्तब्ध होकर खामोशी से खड़े रहे।

कटिया कांड: जिसने पूरे देश को दहला दिया था
2013 में लातेहार के बरवाडीह के कटिया जंगल में मनीष यादव ने अपने दस्ते के साथ मिलकर सीआरपीएफ के 13 जवानों को शहीद कर दिया था। यही नहीं, उसने एक शहीद जवान के शव में बम प्लांट कर दिया था, जिससे देशभर में आक्रोश फैल गया था। यह घटना भारतीय इतिहास की सबसे अमानवीय नक्सली घटनाओं में गिनी जाती है। इसके अलावा 2018 में गढ़वा के पोलपोल हमले में भी मनीष की संलिप्तता थी, जिसमें 6 जवान शहीद हुए थे।

परिजनों के अनुसार मनीष ने इंटर पास करने के बाद दिल्ली में रोजगार की तलाश की थी। लेकिन वहां नौकरी न मिलने पर वापस गांव लौटा। कुछ ही समय में वह नक्सली संगठन से जुड़ गया और जल्द ही सब-जोनल कमांडर बन गया। झारखंड-बिहार की सीमा पर उसकी खौफनाक मौजूदगी दर्ज होने लगी। उस पर 40 से ज्यादा नक्सली वारदातों के मामले दर्ज थे।
रविवार रात करीब दो बजे महुआडांड़ के जंगल में पुलिस और सुरक्षा बलों ने नक्सलियों की मौजूदगी की सूचना पर सर्च ऑपरेशन चलाया। मनीष ने घिरते ही गोलीबारी शुरू कर दी, जिसके जवाब में सुरक्षा बलों की कार्रवाई में वह मारा गया। इस मुठभेड़ के बाद पुलिस ने कुंदन खरवार नामक एक अन्य नक्सली को भी गिरफ्तार किया, जो 2019 में लुकईया मोड़ पर हुए हमले का आरोपी है और जिस पर 10 लाख रुपये का इनाम था।

मनीष की मौत की खबर और शव के गांव पहुंचने पर उसकी पत्नी, माता-पिता और छोटे बच्चों की हालत बेहद खराब हो गई। पत्नी रो-रोकर बेसुध हो गई, जबकि 10 साल का बेटा और 6 साल की बेटी कुछ समझ नहीं पा रहे थे। गांव में यह चर्चा भी थी कि मनीष कभी किसी से सीधे विवाद नहीं करता था, लेकिन संगठन के लिए किसी भी हद तक जाने से परहेज नहीं करता था।
छिपकर आता था गांव, नेटवर्क मजबूत करने की थी जिम्मेदारी
ग्रामीणों ने बताया कि मनीष कभी-कभार ही गांव आता था, वह भी गुपचुप तरीके से। संगठन ने उसे सीमावर्ती इलाकों में नेटवर्क विस्तार की जिम्मेदारी दी थी। उसका मूवमेंट मुख्य रूप से लातेहार, नेतरहाट, महुआडांड़ और पलामू के जंगलों में होता था।
मनीष यादव की मौत के साथ झारखंड-बिहार के सीमावर्ती इलाकों में नक्सल हिंसा के एक लंबे और खूनी अध्याय का अंत हो गया है। हालांकि उसके संगठन से जुड़े कई अन्य सक्रिय सदस्य अब भी पुलिस की रडार पर हैं।