गया जी में गुरु पूर्णिमा के अवसर पर सुर-सलिला संस्था द्वारा “गुरु-शिष्य परंपरा” को समर्पित एक भव्य शास्त्रीय संगीत कार्यक्रम का आयोजन सिजुआर भवन में किया गया। यह कार्यक्रम श्रोताओं के लिए न केवल एक संगीतमय अनुभव रहा, बल्कि भारतीय संस्कृति की उस अमूल्य परंपरा को सजीव कर गया, जिसमें गुरु और शिष्य की आत्मिक संगीत साधना को महत्व दिया जाता है।
कार्यक्रम की शुरुआत गुरु राजन सिजुआर और अन्य वरिष्ठ कलाकारों की उपस्थिति में हुई, जिन्होंने उपस्थित श्रोताओं और कलाकारों को गुरु पूर्णिमा की शुभकामनाएं दीं। इसके पश्चात पंडित सोनू सिंह, पंडित कामेश्वर पाठक, पद्मविभूषण पंडित राजन मिश्रा तथा विजय तिवारी जैसे दिवंगत संगीत साधकों को पुष्पांजलि अर्पित कर श्रद्धांजलि दी गई।

संगीत कार्यक्रम की शुरुआत युवा कलाकार आयुष कुमार एवं अभिमन्यु गोस्वामी के गायन-वादन से हुई। इसके बाद खैरागढ़ से आईं शास्त्रीय गायिका संजना बोस ने रात्रिकालीन राग ‘मालकौंस’ में “अंबे जगतारिणी माँ” और भजन “बाजे मुरलिया बाजे” की मधुर प्रस्तुति से श्रोताओं का मन मोह लिया। उनके साथ तबले पर रजनीश कुमार और हारमोनियम पर सर्वोत्तम कुमार की संगत ने प्रस्तुति को और भी प्रभावशाली बना दिया।
गया की उभरती युवा प्रतिभाओं ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। खुशी कुमारी और वैष्णवी श्रीवास्तव ने भावपूर्ण भजनों से सबका ध्यान खींचा, वहीं रित्विक के गायन और रौशन कुमार की राग चारुकेशी में प्रस्तुति ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
वरिष्ठ गायक राधारमण जी ने अपने स्वरचित भजन “मेरे द्वार पधारो राम” और “हर कदम पर तुम्हारी जरूरत” के माध्यम से वातावरण को भक्तिमय बना दिया। वहीं अर्चना कुमारी और उदित कुमार की प्रस्तुति भी दर्शकों की सराहना प्राप्त करने में सफल रही।
कार्यक्रम का विशेष आकर्षण रहे गया घराने के ख्यातिप्राप्त गायक राजन सिजुआर, जिन्होंने गुरू रूप में राग मेघ मल्हार और मल्हार श्रृंखला की विविध बंदिशों से श्रोताओं को रसमग्न कर दिया। उनकी प्रस्तुति में तबले पर वरिष्ठ वादक दिनेश मौआर ने संगत की, जबकि हारमोनियम पर थे सर्वोत्तम कुमार।
कार्यक्रम के अंतिम चरण में दिनेश मौआर के तबला वादन और महेश लाल हल के ठुमरी गायन ने दर्शकों को सम्मोहित कर दिया।
इस भावपूर्ण संगीतमय आयोजन में गया शहर सहित आसपास के क्षेत्रों से बड़ी संख्या में संगीतप्रेमी, सांस्कृतिक संस्थानों के संगीत शिक्षक-छात्र और वरिष्ठ छायाकार रूपक सिन्हा भी उपस्थित रहे। यह कार्यक्रम गुरु-शिष्य परंपरा की गरिमा को समर्पित एक अनुपम श्रद्धांजलि साबित हुआ, जिसमें संगीत के सुरों से श्रद्धा और संस्कार की रसधारा बही।