बिहार के गया में कचरे के ढेर में ठिठुरती मिली नवजात बच्ची: समाज की संवेदनाओं को झकझोरने वाली घटना

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गया। बिहार के गया जिले में एक ऐसी घटना सामने आई है, जिसने मानवीय संवेदनाओं और सामाजिक मूल्यों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। मुफस्सिल थाना क्षेत्र के सिक्स लेन पुल के नीचे एक नवजात बच्ची को ठंड में कचरे के ढेर और रेत के बीच नंगे बदन छोड़ दिया गया। यह दृश्य देखकर हर किसी का दिल पसीज गया।

रोने की आवाज ने दिल दहला दिया

शनिवार सुबह करीब 11 बजे एक कचरा बीनने वाले किशोर ने पुल के नीचे से किसी बच्चे के रोने की आवाज सुनी। जब वह आवाज की दिशा में गया, तो वहां जो दृश्य देखा, वह किसी भी संवेदनशील व्यक्ति के लिए झकझोर देने वाला था। कचरे के बीच एक झोले में नंगी हालत में ठंड से कांपती हुई नवजात बच्ची पड़ी थी। किशोर ने तुरंत शोर मचाया, जिसके बाद आसपास के लोग वहां जमा हो गए।

एक बुजुर्ग महिला ने हिम्मत दिखाते हुए बच्ची को कचरे से बाहर निकाला और उसे कंबल में लपेट दिया। इसके बाद पुलिस को सूचना दी गई।

पुलिस और बाल कल्याण समिति की तत्परता

नवजात बच्ची को चाइल्ड वेलफेयर कमिटी का मिला सहारा

मुफस्सिल थाना की पुलिस तुरंत महिला कांस्टेबल के साथ मौके पर पहुंची। बच्ची को तत्काल चिकित्सा के लिए ले जाया गया और फिर चाइल्ड वेलफेयर कमिटी (सीडब्ल्यूसी) को सौंप दिया गया। गया के विशेष दत्तक ग्रहण संस्थान के समन्वयक ने बच्ची की स्वास्थ्य जांच कराकर उसे संस्थान में आश्रय दिया।

संस्थान ने लोगों से अपील की है कि ऐसी किसी भी घटना की सूचना 1098 हेल्पलाइन पर दें। संस्थान में पहले से ऐसे चार बच्चे हैं, जिन्हें अलग-अलग परिस्थितियों में लावारिस हालत में पाया गया था। सभी बच्चे स्वस्थ और सुरक्षित हैं।

क्या बेटी होने की सजा?

स्थानीय लोगों का मानना है कि यह घटना बेटियों को लेकर समाज में व्याप्त कुरीतियों का नतीजा है। किसी मां ने शायद बेटी को बोझ मानते हुए इस तरह की क्रूरता दिखाई। समाज की इस सोच ने न केवल एक मासूम को ठंड में मरने के लिए छोड़ दिया, बल्कि मानवीय संवेदनाओं को भी ठेस पहुंचाई है।

मानवता पर गंभीर सवाल

जहां लोग ठंड से बचने के लिए घरों में दुबके हुए थे, वहीं एक नवजात बच्ची ठिठुरती हालत में मौत से जूझ रही थी। यह घटना केवल एक मां की ममता पर सवाल नहीं उठाती, बल्कि पूरे समाज के लिए चेतावनी है।

हालांकि बच्ची अब सुरक्षित हाथों में है, लेकिन यह घटना समाज में फैली उस कड़वी सच्चाई को उजागर करती है, जहां बेटियों को आज भी बोझ समझा जाता है। यह समय है, जब समाज को अपनी सोच और व्यवहार में बदलाव लाने की जरूरत है।

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