औरंगाबाद। राज्य सरकार द्वारा संबद्धता विनियमावली 2011 को जबरन लागू किए जाने के विरोध में वित्त रहित शिक्षक और शिक्षकेतर कर्मचारियों ने मंगलवार को औरंगाबाद शहर के दानी बिगहा बस स्टैंड के पास एक दिवसीय महाधरना दिया। यह आंदोलन बिहार प्रदेश माध्यमिक शिक्षक शिक्षकेतर कर्मचारी महासंघ के बैनर तले आयोजित हुआ, जिसकी अध्यक्षता जिलाध्यक्ष राम नरेश सिंह ने की।
संबद्धता नियमावली को बताया गैर-प्रासंगिक
धरने को संबोधित करते हुए राम नरेश सिंह ने कहा कि वर्ष 1970 से लेकर 2008 तक बिहार में आम जनता द्वारा दी गई जमीन पर निबंधित माध्यमिक विद्यालयों को राज्य सरकार द्वारा मान्यता दी जाती रही है। 715 ऐसे विद्यालय हैं जिन्हें बिहार अराजकीय माध्यमिक विद्यालय अधिनियम 1981 की धारा 19 के तहत मान्यता प्राप्त है और वे स्वत्वधारक नियमावली 1994 के तहत संचालित हैं।
उन्होंने कहा कि संबद्धता विनियमावली 2011 केवल परीक्षा संचालन के लिए बनी है, यह विद्यालयों को न तो किसी प्रकार की आर्थिक सहायता प्रदान करती है और न ही शिक्षकों या छात्रों को सरकारी योजनाओं का समुचित लाभ सुनिश्चित करती है।
2008 से मिला परफॉर्मेंस आधारित अनुदान
राम नरेश सिंह ने बताया कि 2008 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने परफॉर्मेंस आधारित अनुदान देने की नीति लागू की थी। तब से इन विद्यालयों को अनुदान मिल रहा है और विद्यार्थियों को सरकारी योजनाओं का लाभ भी मिल रहा है। अब 2011 की विनियमावली को लागू कर इन विद्यालयों को मान्यता विहीन करने की साजिश रची जा रही है, जो किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं होगी।
चेतावनी: अगर नहीं मानी मांगें, तो होगा आंदोलन
जिला संयोजक प्रद्युमन कुमार सिंह ने कहा कि यह धरना प्रदेश कमेटी के निर्देश पर किया गया है और सरकार यदि अपनी निर्णय को वापस नहीं लेती तो चरणबद्ध आंदोलन शुरू किया जाएगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि यदि सरकार ने शिक्षकों की बात नहीं मानी तो आगामी चुनाव में इसका जवाब वोट से दिया जाएगा।
उन्होंने कहा कि यह सिर्फ आंदोलन नहीं, बल्कि शिक्षा की आत्मा को बचाने की लड़ाई है। उन्होंने बताया कि इस नियमावली के खिलाफ पटना हाईकोर्ट में याचिका भी दायर की गई है।
धरने में प्रमुख शिक्षक व कर्मचारी रहे शामिल:
धरने में डॉ. श्रीधर कुमार सिंह, रविंद्र कुमार सिंह, विवेक कुमार, कविंद्र कुमार, अक्षय कुमार, महेश प्रसाद सिंह, अनूप प्रसाद, गौतम कुमार सहित बड़ी संख्या में शिक्षक और शिक्षकेतर कर्मचारी शामिल हुए। सभी ने एक स्वर में सरकार से मांग की कि 2011 और 2013 की विनियमावली को तत्काल प्रभाव से वापस लिया जाए।