धनुषा (नेपाल) : संत शिरोमणि, तत्वदर्शी संत और पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब जी का 628वां प्रकट दिवस इस वर्ष भी पूरे विश्व में विशेष श्रद्धा और भव्यता के साथ मनाया गया। यह ऐतिहासिक आयोजन नेपाल के धनुषा जिले सहित भारत के 11 सतलोक आश्रमों में एक साथ आयोजित हुआ। लाखों श्रद्धालुओं की उपस्थिति में यह दिन भक्ति, ज्ञान और सेवा का अनुपम संगम बना।

🌸 कबीर साहेब जी की दिव्य जीवनी: पूर्ण ब्रह्म के रूप में प्रकट हुए
भारत के इतिहास में मध्यकाल का भक्तियुग अनेक महान संतों की जीवनगाथाओं से भरा पड़ा है। इन्हीं में सबसे विशिष्ट स्थान है संत कबीर साहेब जी का, जिन्हें अधिकतर लोग एक समाज सुधारक, कवि या संत के रूप में जानते हैं। किंतु सत्य यह है कि कबीर साहेब जी कोई साधारण संत नहीं, अपितु स्वयं पूर्ण ब्रह्म थे जो सन् 1398 (संवत 1455) ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को ब्रह्म मुहूर्त में कमल के पुष्प पर सशरीर सतलोक से अवतरित हुए।
उनका प्राकट्य स्थल लहरतारा तालाब, काशी में है, जहां नीरू और नीमा नामक निसंतान ब्राह्मण दंपत्ति (जिनका वास्तविक नाम गौरीशंकर व सरस्वती था) ने उन्हें शिशु रूप में कमल पर देखा और अपने घर ले आए। कबीर साहेब ने बाल्यकाल से ही अनेक चमत्कारी लीलाएं दिखाईं, जिनमें कुंवारी गाय से दूध निकलवाना, काजी द्वारा नामकरण के समय कुरान के सभी अक्षरों का ‘कबीर-कबीर’ हो जाना, आदि घटनाएं विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं।
उन्होंने 120 वर्षों तक जुलाहे का कार्य करते हुए समाज में व्याप्त पाखंड, आडंबर, जातिवाद, धर्मांधता व अधूरी पूजा-पद्धतियों के खिलाफ क्रांतिकारी संदेश दिया। वे कहते थे:
“पोथी पढ़ी पढ़ी जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।”
उनकी वाणी आज भी कबीर सागर, कबीर बानी, कबीर साखी आदि ग्रंथों के रूप में जीवंत है, जिनका संकलन उनके प्रिय शिष्य धर्मदास जी ने किया।
🌈 सत्यलोक गमन: एक दिव्य विदाई

जब यह भ्रांति फैली कि “काशी में मरने से स्वर्ग और मगहर में मरने से नरक मिलता है”, तो उन्होंने इसे झूठ सिद्ध करने हेतु मगहर में देह त्याग का निर्णय लिया। 1518 ईस्वी (संवत 1575) माघ शुक्ल पक्ष एकादशी को कबीर साहेब जी ने सशरीर सतलोक गमन किया। अंतिम क्षणों में उन्होंने सभी को प्रेम और भाईचारे का संदेश देते हुए कहा:
“जो भी चादर के नीचे मिलेगा, उसे आपस में बाँट लेना और कोई भी झगड़ा न करे।”
जब चादर हटाई गई तो वहां केवल सुगंधित फूल मिले, जिन्हें हिंदू और मुस्लिम अनुयायियों ने आपस में बांट लिया, और आज भी काशी के कबीर चौरा तथा मगहर में यह स्मारक स्थल मौजूद है।
🎉 भव्य आयोजन: सेवा, समाज और श्रद्धा का अद्भुत संगम


628वें प्रकट दिवस के उपलक्ष्य में विश्व प्रसिद्ध संत रामपाल जी महाराज के नेतृत्व में नेपाल के धनुषा आश्रम सहित भारत के 11 सतलोक आश्रमों में यह ऐतिहासिक कार्यक्रम आयोजित किया गया।
🔹 विशेष कार्यक्रमों में सम्मिलित थे:
- निःशुल्क भंडारा: लाखों श्रद्धालुओं के लिए सात्विक व पौष्टिक भोजन की विशेष व्यवस्था।
- दहेज मुक्त विवाह (रमैनी): सैकड़ों युवक-युवतियों के विवाह बिना किसी लेन-देन के, पूर्ण रीति-रिवाज से सम्पन्न।
- रक्तदान शिविर: मानव सेवा के तहत सैकड़ों यूनिट रक्त दान किया गया।
- नशा मुक्ति अभियान: लाखों लोगों ने नशा, मांसाहार, पाखंड छोड़ने की शपथ ली।
- पवित्र पुस्तक वितरण: कबीर साहेब की वाणियों व तत्वज्ञान से जुड़ी पुस्तकें जैसे ज्ञान गंगा, कबीर सागर, आदि निःशुल्क वितरित की गईं।
🌍 विश्व स्तर पर फैला कबीर साहेब का ज्ञान
आज कबीर साहेब जी का ज्ञान संत रामपाल जी महाराज द्वारा भारत, नेपाल, कनाडा, यूएसए, यूके, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी आदि अनेक देशों में प्रचारित हो रहा है। लाखों लोग www.jagatgururampalji.org, टीवी चैनलों व यूट्यूब पर सत्संगों के माध्यम से इस सत्य को जान रहे हैं और अपने जीवन में परिवर्तन ला रहे हैं।
📌 निष्कर्ष: कबीर प्रकट दिवस – मानवता का उत्सव
कबीर साहेब जी का प्रकट दिवस केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, यह एक वैचारिक क्रांति का दिन है। यह दिवस आत्मज्ञान, सामाजिक समानता, और पूर्ण मोक्ष की राह दिखाता है। संत रामपाल जी महाराज के माध्यम से कबीर साहेब का तत्वज्ञान आज पुनः विश्व को शुद्ध भक्ति और वास्तविक अध्यात्म की ओर ले जा रहा है।
“जाति-पाँति पूछे नहीं कोई, हरि को भजे सो हरि का होई।”
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