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जिंदगी से हारे धर्मेंद्र ने मां काली के दरबार में पूरे परिवार संग किया विषपान, आखिरी उम्मीद भी टूट गई थी

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पावापुरी (नालंदा)।
कभी बच्चों की हंसी से गूंजता एक छोटा-सा घर… अब सिर्फ यादें हैं। नालंदा के पावापुरी में एक हृदय विदारक घटना ने पूरे इलाके को स्तब्ध कर दिया है। आर्थिक तंगी और कर्ज के जाल में उलझे धर्मेंद्र नामक व्यक्ति ने शुक्रवार शाम अपने पूरे परिवार के साथ जहर खा लिया। दो बेटियां, एक बेटा, पत्नी — सबकी मौत हो गई। शनिवार देर रात पटना के पीएमसीएच में धर्मेंद्र ने भी दम तोड़ दिया।

मंदिर में मांगी थी आखिरी मदद, लेकिन…
बताया जाता है कि धर्मेंद्र ने इस भयावह कदम से पहले मां काली के मंदिर में अपनी आखिरी उम्मीद जताई थी। पत्नी सोनी कुमारी के साथ मिलकर सोचा था कि एक बार मंदिर वाले ‘बाबा’ से मदद मांग ली जाए। शायद कोई रास्ता निकल आए।

शाम के वक़्त वो अपने चार बच्चों और पत्नी के साथ करीब 1 किलोमीटर पैदल चलकर काली मंदिर पहुंचे। पूजा की, प्रसाद चढ़ाया और बाबा से मदद की गुहार लगाई। बोला, “कर्ज में डूब गए हैं बाबा, कुछ मदद हो जाए।” लेकिन बाबा ने हाथ खड़े कर दिए। धर्मेंद्र फिर बोला, “किसी से दिलवा दीजिए…” जवाब वही— ना

जीवन की आखिरी थाली — ज़हर मिला प्रसाद
जिस दिल में उम्मीद थी, अब वहां हार घर कर चुकी थी। धर्मेंद्र बाजार गया, 70 रुपए में सल्फास की 10 गोलियां खरीदीं। फिर मंदिर लौटकर प्रसाद में मिला दिया। एक-एक कर सबको खिला दिया। पत्नी सोनी, बेटियां दीपा (16), अरिमा (14), बेटा शिवम (14)…
सबसे छोटा बेटा सत्यम भी वहीं था, लेकिन उसने प्रसाद नहीं खाया। जब देखा मां की हालत बिगड़ रही है, तो समझ गया और जहर मिला प्रसाद फेंक दिया।

“बाबा ने भी मदद नहीं की…” — यही बोलते रहे आखिरी लम्हों तक
जब तड़पते हुए धर्मेंद्र की पत्नी सोनी ने कोचिंग संचालक मधुरंजन को फोन किया तो बोली, “हम सबने जहर खा लिया है… छोटा बेटा ठीक है, उसे देख लीजिएगा।”
वहीं से सबको अस्पताल लाया गया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

5.50 लाख का कर्ज, 10% मासिक ब्याज और टूटती हिम्मत
धर्मेंद्र ने दो लोगों से कुल 5.50 लाख रुपए उधार लिए थे। हर महीने 55 हजार रुपए ब्याज भरना पड़ता था। शुरू में दो महीने किसी तरह चुकाया, फिर हालात बिगड़ते गए।
बच्चों की पढ़ाई, दुकान का किराया, घर खर्च— हर महीने 70 से 80 हजार रुपए की जरूरत पड़ने लगी, लेकिन आमदनी बहुत कम थी।
सूदखोरों का दबाव, पत्नी से बदसलूकी… सबकुछ धर्मेंद्र को तोड़ता गया।

सत्यम बच गया, लेकिन सवालों में घिरा बचपन
अब इस हादसे से एकमात्र जीवित बचा सत्यम। जिसने अपनी आंखों के सामने मां, दो बहनें, भाई और पिता को दम तोड़ते देखा।
उसी मासूम ने बाढ़ के उमानाथ घाट पर एक साथ चार चिताएं जलाईं। जीवन के सबसे मासूम वर्षों में ऐसा भयावह दृश्य शायद ही कोई देखता होगा।

पुलिस ने शुरू की जांच, एसआईटी गठित
नालंदा एसपी भारत सोनी ने घटनास्थल का निरीक्षण किया और एक विशेष टीम बनाकर मामले की जांच के निर्देश दिए हैं। पीड़ित परिवार ने अजय उर्फ रामू और धर्मेंद्र कुमार नामक दो सूदखोरों पर गंभीर आरोप लगाए हैं। पुलिस अब हर पहलु की बारीकी से जांच कर रही है।

यह सिर्फ एक खबर नहीं, एक कराह है उस सिस्टम की, जिसने धर्मेंद्र जैसे हजारों लोगों को सुनने से इनकार कर दिया। जब जीवन की डोर उधारी के फंदे में उलझ जाए और उम्मीद के हर दरवाजे बंद हो जाएं, तो ऐसे फैसले जन्म लेते हैं।

आखिरी वक्त में धर्मेंद्र मंदिर गया था — शायद उसे उम्मीद थी कि इंसान नहीं तो भगवान उसकी सुनेंगे। लेकिन जब आस्था भी जवाब दे दे, तब मृत्यु ही शरण बन जाती है।

✍ रिपोर्ट: दीपक कुमार

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